कोई क़ीमत लगाए साए की

By aarif-nazeerJuly 12, 2024
कोई क़ीमत लगाए साए की
है ये दीवार भी किराए की
बुझ गया है पड़ा पड़ा सिगरेट
चुस्कियाँ ले रहा हूँ चाय की


हम पे मसनू'ई धूप फैला कर
उजरतें माँगते हैं साए की
वो जो गुमनाम से सुख़न-वर हैं
शा'इरी कर रहे हैं पाए की


रक़्स-ओ-मय की सजी ये महफ़िल और
साथ में हल्की हल्की गायकी
मशवरा आप से लिया हम ने
और फिर रद्द सभी की राय की


अपने सारे ख़फ़ा हैं 'आरिफ़' जी
आप को फ़िक्र है पराए की
29774 viewsghazalHindi