कोई उस से नहीं कहता कि ये क्या बेवफ़ाई है चुरा कर दिल मिरा अब आँख भी अपनी चुराई है उठो ऐ मय-कशो आबाद मय-ख़ाना करें चल कर ज़रा देखो तो क्या काली घटा घनघोर छाई है बुतों के इश्क़ से हम बाज़ आए हैं न आएँगे नहीं पर्वा हमें दुश्मन अगर सारी ख़ुदाई है नशात-ए-दिल को दुश्मन के बनाएँगे उसी से हम वो कहते हैं तिरी आह-ए-रसा तेरा हवाई है बिगड़ कर ग़ैर से तुम आए हो हम ये समझते हैं हमारे सामने बे-वज्ह क्यूँ सूरत बनाई है हर इक मुश्किल से मुश्किल काम बनता है बनाने से मगर बिगड़ी हुई क़िस्मत किसी ने कब बनाई है ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो कहने लगे हँस कर किसी दुश्मन ने शायद ये ख़बर झूटी उड़ाई है गुलों को नग़्मा-ए-बुलबुल सुनाई तक नहीं देता तिरे दीवानों ने वो धूम गुलशन में मचाई है दिल-ए-आशिक़ में हो ऐ 'मशरिक़ी' गर जज़्ब-ए-दिल कामिल वो बुत फिर क्यूँ न माइल हो कोई घर की ख़ुदाई है