कूज़ा-ए-दुनिया है अपने चाक से बिछड़ा हुआ
By jamal-ehsaniNovember 2, 2020
कूज़ा-ए-दुनिया है अपने चाक से बिछड़ा हुआ
और उस के बीच मैं अफ़्लाक से बिछड़ा हुआ
उस जगह मैं भी भटकता फिर रहा हूँ आज तक
जिस जगह था रास्ता पेचाक से बिछड़ा हुआ
दिन गुज़रते जा रहे हैं और हुजूम-ए-ख़ुश-गुमाँ
मुंतज़िर बैठा है आब ओ ख़ाक से बिछड़ा हुआ
सुब्ह-दम देखा तो ख़ुश्की पर तड़पता था बहुत
एक मंज़र दीदा-ए-नमनाक से बिछड़ा हुआ
इस जहान-ए-ख़स्ता से कोई तवक़्क़ो' है अबस
ये बदन है रूह की पोशाक से बिछड़ा हुआ
जब भी तौला बे-नियाज़ी की तराज़ू में उसे
वो भी निकला ज़ब्त के इदराक से बिछड़ा हुआ
इक सितारा मुझ से मिल कर रो पड़ा था कल 'जमाल'
वो फ़लक से और मैं था ख़ाक से बिछड़ा हुआ
और उस के बीच मैं अफ़्लाक से बिछड़ा हुआ
उस जगह मैं भी भटकता फिर रहा हूँ आज तक
जिस जगह था रास्ता पेचाक से बिछड़ा हुआ
दिन गुज़रते जा रहे हैं और हुजूम-ए-ख़ुश-गुमाँ
मुंतज़िर बैठा है आब ओ ख़ाक से बिछड़ा हुआ
सुब्ह-दम देखा तो ख़ुश्की पर तड़पता था बहुत
एक मंज़र दीदा-ए-नमनाक से बिछड़ा हुआ
इस जहान-ए-ख़स्ता से कोई तवक़्क़ो' है अबस
ये बदन है रूह की पोशाक से बिछड़ा हुआ
जब भी तौला बे-नियाज़ी की तराज़ू में उसे
वो भी निकला ज़ब्त के इदराक से बिछड़ा हुआ
इक सितारा मुझ से मिल कर रो पड़ा था कल 'जमाल'
वो फ़लक से और मैं था ख़ाक से बिछड़ा हुआ
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