कुछ यहाँ फ़र्क़ है अपने का न बेगाने का एक दस्तूर है हर दौर में मयख़ाने का रक़्स-ए-मीना है न वो दौर है पैमाने का इन दिनों हाल ही कुछ और है मयख़ाने का मैं तो हर हाल में जी लूँगा मगर जल्वा-ए-दोस्त बिन तिरे दिल नहीं गोशा है ये वीराने का शोहरत-ए-आम तो हासिल थी पर ऐसी भी न थी लोग उन्वान बना लें मुझे अफ़्साने का वो गया वक़्त कि जब दिल को न थी ग़म से नजात ये ज़माना तो है हँस हँस के जिए जाने का ऐसे खोए रहे हम राह-रवी में 'अज़्मत' होश आया नहीं मंज़िल पे ठहर जाने का