कुछ यहाँ फ़र्क़ है अपने का न बेगाने का
By azmat-bhopaliOctober 3, 2021
कुछ यहाँ फ़र्क़ है अपने का न बेगाने का
एक दस्तूर है हर दौर में मयख़ाने का
रक़्स-ए-मीना है न वो दौर है पैमाने का
इन दिनों हाल ही कुछ और है मयख़ाने का
मैं तो हर हाल में जी लूँगा मगर जल्वा-ए-दोस्त
बिन तिरे दिल नहीं गोशा है ये वीराने का
शोहरत-ए-आम तो हासिल थी पर ऐसी भी न थी
लोग उन्वान बना लें मुझे अफ़्साने का
वो गया वक़्त कि जब दिल को न थी ग़म से नजात
ये ज़माना तो है हँस हँस के जिए जाने का
ऐसे खोए रहे हम राह-रवी में 'अज़्मत'
होश आया नहीं मंज़िल पे ठहर जाने का
एक दस्तूर है हर दौर में मयख़ाने का
रक़्स-ए-मीना है न वो दौर है पैमाने का
इन दिनों हाल ही कुछ और है मयख़ाने का
मैं तो हर हाल में जी लूँगा मगर जल्वा-ए-दोस्त
बिन तिरे दिल नहीं गोशा है ये वीराने का
शोहरत-ए-आम तो हासिल थी पर ऐसी भी न थी
लोग उन्वान बना लें मुझे अफ़्साने का
वो गया वक़्त कि जब दिल को न थी ग़म से नजात
ये ज़माना तो है हँस हँस के जिए जाने का
ऐसे खोए रहे हम राह-रवी में 'अज़्मत'
होश आया नहीं मंज़िल पे ठहर जाने का
69752 viewsghazal • Hindi