कुछ रंज तो ग़ुबार-ए-सफ़र से निकल गया

By salim-saleemFebruary 28, 2024
कुछ रंज तो ग़ुबार-ए-सफ़र से निकल गया
अच्छा हुआ कि आज मैं घर से निकल गया
मैं ने लकीरें खींच रखी थीं चहार सम्त
जाने वो शहसवार किधर से निकल गया


जिस लम्हे मैं ने ज़िंदगी पाई थी एक बार
वो लम्हा मेरे शाम-ओ-सहर से निकल गया
हैरत-सरा-ए-‘इश्क़ में दाख़िल हुआ था मैं
फिर यूँ हुआ कि अपनी ख़बर से निकल गया


उस की जगह भरी हैं अब आँखों में हसरतें
इक ख़्वाब था जो दीदा-ए-तर से निकल गया
56408 viewsghazalHindi