कुछ साग़र छलकाने तक महदूद रहा

By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
कुछ साग़र छलकाने तक महदूद रहा
घर का ग़म मयख़ाने तक महदूद रहा
बीच बीच में मेरा होश में आना भी
मंज़र को धुँदलाने तक महदूद रहा


आज का क़िस्सा शहज़ादे की बातों में
परियों के आ जाने तक महदूद रहा
शहर की सरहद चँद क़दम पर थी लेकिन
दीवाना वीराने तक महदूद रहा


साफ़ थी उस की हर आहट हर साँस मगर
मैं ख़ुद को चौंकाने तक महदूद रहा
रुक रुक कर आती साँसों का धोका भी
सिर्फ़ उसे झुटलाने तक महदूद रहा


79382 viewsghazalHindi