कुछ तो अहबाब ज़रा दिल के बड़े हैं मेरे
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
कुछ तो अहबाब ज़रा दिल के बड़े हैं मेरे
कुछ मनाने के तरीक़े भी नए हैं मेरे
सच तो ये है कि निशाने पे कोई था ही नहीं
यूँ भी कुछ तीर निशाने पे लगे हैं मेरे
कोई मंज़िल हो इन्हें ख़र्च नहीं करता मैं
ये क़दम लौट के आने के लिए हैं मेरे
ये जो आए हैं मदद को मिरी अंजान हैं सब
साथ वाले तो कहीं दूर खड़े हैं मेरे
'इश्क़ में जान न देने का है अफ़्सोस मगर
काम कुछ हैं जो शहादत से बड़े हैं मेरे
कुछ मनाने के तरीक़े भी नए हैं मेरे
सच तो ये है कि निशाने पे कोई था ही नहीं
यूँ भी कुछ तीर निशाने पे लगे हैं मेरे
कोई मंज़िल हो इन्हें ख़र्च नहीं करता मैं
ये क़दम लौट के आने के लिए हैं मेरे
ये जो आए हैं मदद को मिरी अंजान हैं सब
साथ वाले तो कहीं दूर खड़े हैं मेरे
'इश्क़ में जान न देने का है अफ़्सोस मगर
काम कुछ हैं जो शहादत से बड़े हैं मेरे
39079 viewsghazal • Hindi