कुचला किए हैं कितने ही लश्कर ज़मीन को

By aarif-nazeerJuly 12, 2024
कुचला किए हैं कितने ही लश्कर ज़मीन को
ऐसे किया गया है बराबर ज़मीन को
मैं ने भी सैर की है कभी आसमान की
मैं जानता हूँ दश्त समंदर ज़मीन को


पैरों से धीरे धीरे खिसकने लगी है अब
कब तक रखूँ मैं यार पकड़ कर ज़मीन को
जब भी थकन से चूर हुआ सो गया हूँ मैं
चादर फ़लक को मान के बिस्तर ज़मीन को


मुझ को लिबास-ए-रूह अलग से 'अता हुआ
दफ़ना दिया गया मिरे अंदर ज़मीन को
पाताल में पड़ा हूँ मगर पुर-सुकून हूँ
मैं झाँकता रहा हूँ उछल कर ज़मीन को


दलदल को पार करना है 'आरिफ़' और उस के बा'द
रख देंगे तेरे सामने ला कर ज़मीन को
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