कुश्तगान-ए-गर्दिश-ए-अय्याम होना था हुए गुम थे हम ख़्वाबों में जो अंजाम होना था हुए हर फ़साद-ए-नौ पे इक क़ानून-ए-नौ बनता गया फिर भी सुब्ह-ओ-शाम क़त्ल-ए-आम होना था हुए अपनी लाश अपने ही काँधों पर लिए हम उमर भर हम-सफ़र हालात के हर गाम होना था हुए ज़ुल्मतों ने रात की माँगे लहू के फिर चराग़ फिर उजालों को हमारे नाम होना था हुए था बपा हर शहर में हंगामा-ए-ज़ाग़-ओ-ज़ग़न और हम शाहीन ज़ेर-ए-दाम होना था हुए इस सितम-ईजाद की हर तर्ज़-ए-नौ पर जान दी फिर भी ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-दुश्नाम होना था हुए आबरू हम ने बढ़ाई शम्अ की शोहरत भी दी हम से परवाने मगर गुमनाम होना था हुए अब तो माइल है नुमाइश पर मिज़ाज-ए-हुस्न भी अहल-ए-दिल को इश्क़ में नाकाम होना था हुए एक मीठा ज़हर जैसे प्यार था उस का 'कलीम' जाँ-ब-लब जाम-ए-लब-ए-गुलफ़ाम होना था हुए