क्या इरादा है मिरे यार कहाँ जाता है तेज़ इतनी है जो रफ़्तार कहाँ जाता है तेरी मंज़िल तो किसी और तरफ़ है और तू ऐ मिरे क़ाफ़िला-सालार कहाँ जाता है आ ज़रा देर कहीं बैठ के बातें कर लें छोड़ बाज़ार को बाज़ार कहाँ जाता है फिरता रहता है मज़ाफ़ात में तेरे दिन-रात दूर अब तेरा गिरफ़्तार कहाँ जाता है तेरे चेहरे की चमक बोल रही है ख़ुद ही इस क़दर हो के ये तय्यार कहाँ जाता है पहले मुमकिन था मगर अब ये नहीं है मुमकिन अब मिरे दिल का ये आज़ार कहाँ जाता है मैं छुपाऊँ भी तो ये बात कहाँ छुपती है सब को मालूम है बीमार कहाँ जाता है कार-ए-दुनिया भी नहीं है ये फ़क़ीरी भी नहीं बे-नियाज़-ए-कम-ओ-बिसयार कहाँ जाता है ये तिरे चलने का अंदाज़ नहीं है बिल्कुल तेरा जाना है पुर-असरार कहाँ जाता है उस की तक़दीर में लिक्खा है जहाँ है वहीं हो किसी जानिब कोई कोहसार कहाँ जाता है है तुझे धूप में जलने का बहुत शौक़ 'हनीफ़' छोड़ कर साया-ए-दीवार कहाँ जाता है