लाखों ग़म छुपाए हैं इक ख़ुशी के पर्दे में

By munne-khan-azimJune 7, 2021
लाखों ग़म छुपाए हैं इक ख़ुशी के पर्दे में
दर्द ही के साए हैं हर हँसी के पर्दे में
क्या यक़ीं करें यारो अपने हों कि बेगाने
दुश्मनी ही पाते हैं दोस्ती के पर्दे में


ये भी तो हक़ीक़त है तल्ख़ ही सही लेकिन
मौत ही के साए हैं ज़िंदगी के पर्दे में
हसरतों की बस्ती में है जनाज़ा अरमाँ का
कुल्फ़तें ही पाते हैं दिल लगी के पर्दे में


वो जफ़ा के ख़ूगर हैं हम वफ़ा के पर्वर्दा
उल्फ़तें भी पाते हैं बरहमी के पर्दे में
अपनी कम-नसीबी का क्या करें गिला 'आज़िम'
तीरगी ही पाते हैं रौशनी के पर्दे में


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