लौ दे रहे हैं आज दिल-ए-दाग़-दाग़ भी रौशन हुए हैं फ़िक्र-ओ-नज़र के चराग़ भी उन का मिज़ाज औज-ए-सुरय्या पे है अगर है हफ़्त-आसमाँ पे हमारा दिमाग़ भी रखते कहीं क़दम हैं तो पड़ते कहीं हैं और सहबा-ए-बे-खु़दी से हैं छिलके अयाग़ भी मौसम बदल गया है सबा ख़ुश-ख़िराम है गुल-हा-ए-रंग-रंग से महके हैं बाग़ भी ग़म-हा-ए-बे-पनाह के बा-वस्फ़ दोस्तो फ़र्त-ए-ख़ुशी से आज है दिल बाग़ बाग़ भी गुज़रा है रास्ते से कोई गुल-बदन ज़रूर ख़ुशबू का अब तो मिलने लगा है सुराग़ भी फ़ितरत जुदा जुदा है तबीअत जुदा जुदा रंगत में यूँ तो एक है कोयल भी ज़ाग़ भी चेहरे के ख़द्द-ओ-ख़ाल भी वाज़ेह न कर सके उलझा हुआ है ज़ोर-ए-क़लम का बलाग़ भी सहरा को देख कर हुआ 'सिद्दीक़' ये गुमाँ हासिल हुआ अब अहल-ए-जुनूँ को फ़राग़ भी