लौह-ए-मज़ार देख के जी दंग रह गया हर एक सर के साथ फ़क़त संग रह गया बदनाम हो के इश्क़ में हम सुर्ख़-रू हुए अच्छा हुआ कि नाम गया नंग रह गया होती न हम को साया-ए-दीवार की तलाश लेकिन मुहीत-ए-ज़ीस्त बहुत तंग रह गया सीरत न हो तो आरिज़-ओ-रुख़्सार सब ग़लत ख़ुश्बू उड़ी तो फूल फ़क़त रंग रह गया अपने गले में अपनी ही बाँहों को डालिए जीने का अब तो एक यही ढंग रह गया कितने ही इंक़लाब शिकन-दर-शिकन मिले आज अपनी शक्ल देख के मैं दंग रह गया तख़ईल की हदों का तअ'य्युन न हो सका लेकिन मुहीत-ए-ज़ीस्त बहुत तंग रह गया कल काएनात-ए-फ़िक्र से आज़ाद हो गई इंसाँ मिसाल-ए-दस्त-ए-तह-ए-संग रह गया हम उन की बज़्म-ए-नाज़ में यूँ चुप हुए 'ज़हीर' जिस तरह घुट के साज़ में आहंग रह गया