ले के हम-राह छलकते हुए पैमाने को

By ahmad-mushtaqOctober 23, 2020
ले के हम-राह छलकते हुए पैमाने को
आन पहुँची है ये साअत भी गुज़र जाने को
हाँ इसे रह-गुज़र-ए-ख़ंदा-ए-गुल कहते हैं
हाँ यही राह निकल जाती है वीराने को


फ़ाएदा भी कोई जल जल के मरे जाने से
कौन इस शम्अ' से रौशन करे परवाने को
संग उठाना तो बड़ी बात है अब शहर के लोग
आँख उठा कर भी नहीं देखते दीवाने को


कल भी देखा था उन्हें आज भी दर्शन होंगे
हस्ब-ए-मामूल वो निकलेंगे हवा खाने को
66059 viewsghazalHindi