लिफ़ाफ़े में एक कोरा काग़ज़ पड़ा हुआ था

By ahmad-kamal-hashmiMay 24, 2024
लिफ़ाफ़े में एक कोरा काग़ज़ पड़ा हुआ था
समझ गया था मैं जो कुछ उस में लिखा हुआ था
उस एक दिन से अभी तलक मैं ख़फ़ा हूँ ख़ुद से
बस एक दिन के लिए वो मुझ से ख़फ़ा हुआ था


बना दिया मुझ को देवता उस की आज़री ने
मैं एक पत्थर था रास्ते में पड़ा हुआ था
तलाश मुझ को अंधेरे में कर रही थी दुनिया
नज़र न आया मैं रौशनी में छुपा हुआ था


सता रहा है ग़म-ए-जुदाई से बढ़ के ये ग़म
दम-ए-जुदाई वो मुस्कुरा कर जुदा हुआ था
'कमाल' मेरे कमाल-ए-फ़न की तो दाद दीजे
मैं अंदर अंदर था टूटा बाहर जुड़ा हुआ था


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