लिखती हूँ सब हिकायतें दिल की

By sumaira-khalidFebruary 29, 2024
लिखती हूँ सब हिकायतें दिल की
ख़त्म कब हों शिकायतें दिल की
दान में मुझ को ग़म के सिक्के मिले
थीं कुछ ऐसी 'इनायतें दिल की


चेहरे से मिट गई शिकन लेकिन
मिट न पाईं ‘अदावतें दिल की
न रिहाई मिली न शुनवाई
कैसी ज़ालिम ‘अदालतें दिल की


कोई ऐसा 'अलीम-ए-हाल भी हो
बूझ ले जो बुझारतें दिल की
ऐसी तासीर हो ज़बाँ में मिरी
रंग लाएँ सिफ़ारतें दिल की


हर घड़ी उस के ध्यान में गुम हूँ
सुनती हूँ कब बशारतें दिल की
ज़ो'म था जिन को रू-शनासी का
पढ़ न पाए ‘इबारतें दिल की


तेरे आने से अब हो क्या हासिल
ढह गईं जब 'इमारतें दिल की
हो चुकी थीं फ़सीलें बोसीदा
सह तो लेतीं क़यामतें दिल की


इक इशारे पे भूला हद्द-ए-अदब
अल्लह अल्लह जसारतें दिल की
एक दिल था सो वो भी फूँक दिया
कौन करता किफ़ायतें दिल की


हुज़्न-ए-यूसुफ़ में खो गईं आँखें
काम आईं बसारतें दिल की
97811 viewsghazalHindi