लो डूब गया फ़र्श-ए-‘अज़ा दीदा-ए-नम से
By azwar-shiraziFebruary 26, 2024
लो डूब गया फ़र्श-ए-‘अज़ा दीदा-ए-नम से
अब कोई न गिर्ये का तक़ाज़ा करे हम से
खटका है कि सैलाब-ए-जुनूँ-ख़ेज़ के हाथों
गिर जाए कहीं जिस्म की दीवार न धम से
शह को मिरे इंकार से मा'लूम हुआ है
हर इक को ख़रीदा नहीं जा सकता रक़म से
हम लोग भी क्या सादा हैं तस्कीन की ख़ातिर
उम्मीद लगा लेते हैं पत्थर के सनम से
अफ़सोस कि मक़्तल में तह-ए-तेग़-ओ-तबर है
माँ-बाप ने पाला था जिसे नाज़-ओ-नि’अम से
मत पूछ कि अंदर से हैं किस दर्जा शिकस्ता
जो लोग बज़ाहिर नज़र आते हैं बहम से
अब आ के मुझे रंज की राहत हुई हासिल
पहले मैं समझता था कि मर जाउँगा ग़म से
मुझ-दिल को फ़क़त क़र्या-ए-बर्बाद न समझो
इक वक़्त ये सरसब्ज़ 'इलाक़ा था क़सम से
अब कोई न गिर्ये का तक़ाज़ा करे हम से
खटका है कि सैलाब-ए-जुनूँ-ख़ेज़ के हाथों
गिर जाए कहीं जिस्म की दीवार न धम से
शह को मिरे इंकार से मा'लूम हुआ है
हर इक को ख़रीदा नहीं जा सकता रक़म से
हम लोग भी क्या सादा हैं तस्कीन की ख़ातिर
उम्मीद लगा लेते हैं पत्थर के सनम से
अफ़सोस कि मक़्तल में तह-ए-तेग़-ओ-तबर है
माँ-बाप ने पाला था जिसे नाज़-ओ-नि’अम से
मत पूछ कि अंदर से हैं किस दर्जा शिकस्ता
जो लोग बज़ाहिर नज़र आते हैं बहम से
अब आ के मुझे रंज की राहत हुई हासिल
पहले मैं समझता था कि मर जाउँगा ग़म से
मुझ-दिल को फ़क़त क़र्या-ए-बर्बाद न समझो
इक वक़्त ये सरसब्ज़ 'इलाक़ा था क़सम से
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