लोग इस दश्त में मारूफ़ हुए कम-कम से
By tasnim-abbas-quraishiMarch 1, 2024
लोग इस दश्त में मारूफ़ हुए कम-कम से
रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ हम से है और बस हम से
होंगे अंगुश्त-ब-दंदाँ सभी ग़म के मारे
ऐसे कर लूँगा कशीद आज ख़ुशी इस ग़म से
इस ग़ज़ल में न कोई मिसरा' है जुज़ मिसरा’-ए-तर
और हर मिसरा’-ए-तर उट्ठा है दिल के नम से
हम पिलाएँगे तो दम तोड़ेगी ये तिश्ना-लबी
कोई सैराब न होगा यहाँ जाम-ए-जम से
नाइब-ए-ख़ालिक-ए-कुल हूँ मैं ज़मीं पर 'तसनीम'
गर्दिश-ए-वक़्त मुसलसल है मिरे ही दम से
रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ हम से है और बस हम से
होंगे अंगुश्त-ब-दंदाँ सभी ग़म के मारे
ऐसे कर लूँगा कशीद आज ख़ुशी इस ग़म से
इस ग़ज़ल में न कोई मिसरा' है जुज़ मिसरा’-ए-तर
और हर मिसरा’-ए-तर उट्ठा है दिल के नम से
हम पिलाएँगे तो दम तोड़ेगी ये तिश्ना-लबी
कोई सैराब न होगा यहाँ जाम-ए-जम से
नाइब-ए-ख़ालिक-ए-कुल हूँ मैं ज़मीं पर 'तसनीम'
गर्दिश-ए-वक़्त मुसलसल है मिरे ही दम से
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