लुट गया घर तो है अब सुब्ह कहीं शाम कहीं
By khalilur-rahman-azmiFebruary 27, 2024
लुट गया घर तो है अब सुब्ह कहीं शाम कहीं
देखिए अब हमें मिलता भी है आराम कहीं
कहीं ऐसा न हो फ़ित्ना कोई बरपा हो जाए
अब कभी भूल के लीजे न मिरा नाम कहीं
हम सितम-ख़ुर्दा हैं कुछ दूर ही हट कर रहिए
देखिए आप पे आ जाए न इल्ज़ाम कहीं
जब पड़ा ग़म तो बदलती ही नहीं ये दुनिया
जा के अब बैठ रही गर्दिश-ए-अय्याम कहीं
मेरे अहबाब के इख़्लास का पर्दा रह जाए
मुझ को पहले ही डुबो दे दिल-ए-नाकाम कहीं
कोह-ओ-सहरा की तरफ़ चल तो पड़े हैं वहशी
फिर उन्हें रोक न लें तेरे दर-ओ-बाम कहीं
मय-कदा छोड़ के हम रिंद बहुत पछताए
हम पे सजता ही नहीं जामा-ए-एहराम कहीं
देखिए अब हमें मिलता भी है आराम कहीं
कहीं ऐसा न हो फ़ित्ना कोई बरपा हो जाए
अब कभी भूल के लीजे न मिरा नाम कहीं
हम सितम-ख़ुर्दा हैं कुछ दूर ही हट कर रहिए
देखिए आप पे आ जाए न इल्ज़ाम कहीं
जब पड़ा ग़म तो बदलती ही नहीं ये दुनिया
जा के अब बैठ रही गर्दिश-ए-अय्याम कहीं
मेरे अहबाब के इख़्लास का पर्दा रह जाए
मुझ को पहले ही डुबो दे दिल-ए-नाकाम कहीं
कोह-ओ-सहरा की तरफ़ चल तो पड़े हैं वहशी
फिर उन्हें रोक न लें तेरे दर-ओ-बाम कहीं
मय-कदा छोड़ के हम रिंद बहुत पछताए
हम पे सजता ही नहीं जामा-ए-एहराम कहीं
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