लुत्फ़ की उन से इल्तिजा न करें हम ने ऐसा कभी किया न करें मिल रहेगा जो उन से मिलना है लब को शर्मिंदा-ए-दुआ न करें सब्र मुश्किल है आरज़ू बेकार क्या करें आशिक़ी में क्या न करें मस्लक-ए-इश्क़ में है फ़िक्र हराम दिल को तदबीर-आश्ना न करें भूल ही जाएँ हम को ये तो न हो लोग मेरे लिए दुआ न करें मर्ज़ी-ए-यार के ख़िलाफ़ न हो कौन कहता है वो जफ़ा न करें शौक़ उन का सो मिट चुका 'हसरत' क्या करें हम अगर वफ़ा न करें