महफ़िल में बार बार जो हम पर नज़र गई
By aftab-ranjhaMay 22, 2024
महफ़िल में बार बार जो हम पर नज़र गई
हर दिल पे जैसे लहर-ए-क़यामत गुज़र गई
कर के उमीद-ए-ज़िंदगी जीते रहे हैं हम
अब कि उमीद-ए-ज़िंदगी जाने किधर गई
मिलना तुम्हारा जैसे बहारों का इम्बिसात
पूछा जो मेरा हाल तो क़िस्मत सँवर गई
वो क्या ख़बर थी जिस ने हमें बे-ख़बर किया
वो क्या नज़र थी ज़ख़्म-ए-जिगर तक उतर गई
कैसे हुए फ़रेफ़्ता ये राज़ ही रहा
शायद निगाह-ए-यार बड़ा काम कर गई
उलझे हैं इस तरह से ग़म-ए-रोज़गार में
लज़्ज़त ग़म-ए-फ़िराक़ की शाम-ओ-सहर गई
ऐ हुस्न तेरे चाहने वालों की ख़ैर हो
ऐ 'इश्क़ तेरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ बे-असर गई
हर दिल सुलग रहा है मोहब्बत की आग में
जाने बला-ए-‘इश्क़ भी किस किस के घर गई
बदनाम कर गई है हमें रस्म-ए-दिलबरी
जो भी नज़र उठी है वो हम पर ठहर गई
मेरी किताब-ए-ग़म का भी क़िस्सा हुआ तमाम
इस शहर-ए-ना-शनास में वो दर-ब-दर गई
'बरहम' गया है काम से दिल भी हमारे साथ
आया ख़याल-ए-यार तो भी आँख भर गई
हर दिल पे जैसे लहर-ए-क़यामत गुज़र गई
कर के उमीद-ए-ज़िंदगी जीते रहे हैं हम
अब कि उमीद-ए-ज़िंदगी जाने किधर गई
मिलना तुम्हारा जैसे बहारों का इम्बिसात
पूछा जो मेरा हाल तो क़िस्मत सँवर गई
वो क्या ख़बर थी जिस ने हमें बे-ख़बर किया
वो क्या नज़र थी ज़ख़्म-ए-जिगर तक उतर गई
कैसे हुए फ़रेफ़्ता ये राज़ ही रहा
शायद निगाह-ए-यार बड़ा काम कर गई
उलझे हैं इस तरह से ग़म-ए-रोज़गार में
लज़्ज़त ग़म-ए-फ़िराक़ की शाम-ओ-सहर गई
ऐ हुस्न तेरे चाहने वालों की ख़ैर हो
ऐ 'इश्क़ तेरी आह-ओ-फ़ुग़ाँ बे-असर गई
हर दिल सुलग रहा है मोहब्बत की आग में
जाने बला-ए-‘इश्क़ भी किस किस के घर गई
बदनाम कर गई है हमें रस्म-ए-दिलबरी
जो भी नज़र उठी है वो हम पर ठहर गई
मेरी किताब-ए-ग़म का भी क़िस्सा हुआ तमाम
इस शहर-ए-ना-शनास में वो दर-ब-दर गई
'बरहम' गया है काम से दिल भी हमारे साथ
आया ख़याल-ए-यार तो भी आँख भर गई
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