मैं आग हूँ पानी हूँ न मिट्टी न हवा हूँ
By farooq-noorFebruary 6, 2024
मैं आग हूँ पानी हूँ न मिट्टी न हवा हूँ
हालाँकि इन्हीं चार 'अनासिर से बना हूँ
रिश्तों की हक़ीक़त के भरम टूट रहे हैं
इक शाख़-ए-बुरीदा की तरफ़ देख रहा हूँ
मजबूर हूँ मैं अपने उसूलों की बिना पर
दुनिया ये समझती है कि पाबंद-ए-अना हूँ
महफ़ूज़ मुझे कर लें ज़माने की निगाहें
मैं अपने तशख़्ख़ुस में अकेला ही बचा हूँ
वो शान है मेरी कि मलाइक का हूँ मस्जूद
कहने को खनकती हुई मिट्टी से बना हूँ
घर में तो मिरी एक नहीं चलती है लेकिन
बाहर यही मशहूर है मैं घर का बड़ा हूँ
मैं 'नूर' त'आरुफ़ के लिए कुछ नहीं रखता
अब कैसे बताऊँगा तुम्हें कौन हूँ क्या हूँ
हालाँकि इन्हीं चार 'अनासिर से बना हूँ
रिश्तों की हक़ीक़त के भरम टूट रहे हैं
इक शाख़-ए-बुरीदा की तरफ़ देख रहा हूँ
मजबूर हूँ मैं अपने उसूलों की बिना पर
दुनिया ये समझती है कि पाबंद-ए-अना हूँ
महफ़ूज़ मुझे कर लें ज़माने की निगाहें
मैं अपने तशख़्ख़ुस में अकेला ही बचा हूँ
वो शान है मेरी कि मलाइक का हूँ मस्जूद
कहने को खनकती हुई मिट्टी से बना हूँ
घर में तो मिरी एक नहीं चलती है लेकिन
बाहर यही मशहूर है मैं घर का बड़ा हूँ
मैं 'नूर' त'आरुफ़ के लिए कुछ नहीं रखता
अब कैसे बताऊँगा तुम्हें कौन हूँ क्या हूँ
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