मैं अपने जिस्म में कुछ इस तरह से बिखरा हूँ
By aabid-adeebApril 20, 2024
मैं अपने जिस्म में कुछ इस तरह से बिखरा हूँ
कि ये भी कह नहीं सकता मैं कौन हूँ क्या हूँ
उन्हें ख़ुशी है इसी बात से कि ज़िंदा हूँ
मैं उन की दाएँ हथेली की एक रेखा हूँ
मैं पी गया हूँ कई आँसुओं के सैल-ए-रवाँ
मैं अपने दिल को समुंदर बनाए बैठा हूँ
वो मेरे दोस्त जो एक एक कर के दूर हुए
मैं उन को आज भी अपने क़रीब पाता हूँ
मुहीत करने की कोशिश फ़ुज़ूल है मुझ को
नदी का छोर नहीं हूँ मैं बहता दरिया हूँ
मुझी पे फेंके है पत्थर जो कोई आता है
कि जैसे मैं तिरी खिड़की का कोई शीशा हूँ
कि ये भी कह नहीं सकता मैं कौन हूँ क्या हूँ
उन्हें ख़ुशी है इसी बात से कि ज़िंदा हूँ
मैं उन की दाएँ हथेली की एक रेखा हूँ
मैं पी गया हूँ कई आँसुओं के सैल-ए-रवाँ
मैं अपने दिल को समुंदर बनाए बैठा हूँ
वो मेरे दोस्त जो एक एक कर के दूर हुए
मैं उन को आज भी अपने क़रीब पाता हूँ
मुहीत करने की कोशिश फ़ुज़ूल है मुझ को
नदी का छोर नहीं हूँ मैं बहता दरिया हूँ
मुझी पे फेंके है पत्थर जो कोई आता है
कि जैसे मैं तिरी खिड़की का कोई शीशा हूँ
14065 viewsghazal • Hindi