मैं समझता था हक़ीक़त आश्ना हो जाएगा

By akhtar-ziaiJune 1, 2024
मैं समझता था हक़ीक़त आश्ना हो जाएगा
क्या ख़बर थी मेरी बातों से ख़फ़ा हो जाएगा
रफ़्ता-रफ़्ता इब्तिला-ए-ग़म शिफ़ा हो जाएगा
दर्द ही हद से गुज़रने पर दवा हो जाएगा


हम पे तो पहले ही ज़ाहिर था मआल-ए-बंदगी
पूजने जाओगे जिस बुत को ख़ुदा हो जाएगा
तज्रबे की आँच से आख़िर रक़ीब-ए-रू-सियह
उन की क़ुर्बत से हमारा हम-नवा हो जाएगा


आह जो सीने से निकलेगी फ़ुग़ाँ बन जाएगी
अश्क जो आँखों से टपकेगा दु'आ बन जाएगा
दम-ब-दम जो साथ देने का किया करता था 'अह्द
किस को था मा'लूम कि इक दिन जुदा हो जाएगा


छोड़ने वाले सर-ए-राहे हमें तेरे लिए
ज़िंदगानी का सफ़र बे-मुद्दआ हो जाएगा
इक निगाह-ए-लुत्फ़ वो पहली सी दिलदारी के साथ
दान कर दीजे ग़रीबों का भला हो जाएगा


सहल-तर होगा नजात-ए-ख़ल्क़ में क़र्ज़-ए-वफ़ा
जान भी देगा अगर 'अख़्तर' अदा हो जाएगा
70321 viewsghazalHindi