मैं तोड़ूँ अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा ये हो नहीं सकता वो होते हैं तो हो जाएँ जुदा ये हो नहीं सकता पिला साक़ी कि शग़्ल-ए-मय-कशी का वक़्त जाता है यूँही छाई रहे काली घटा ये हो नहीं सकता वो चश्म-ए-सुर्मगीं जब तक मसीहाई न फ़रमाए मरीज़-ए-ग़म को हो जाए शिफ़ा ये हो नहीं सकता न देखे शैख़ तू जब तक बुतों को मेरी आँखों से नज़र आए तुझे शान-ए-ख़ुदा ये हो नहीं सकता वो बाज़ आएँ जफ़ा-ओ-जौर से ये ग़ैर-मुमकिन है मैं छोड़ूँ ख़ू-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा ये हो नहीं सकता नदामत हो मुझे अपनी जफ़ा पर ये तो मुमकिन है तिरा दिल हो पशीमान-ए-जफ़ा ये हो नहीं सकता पसंदीदा न हो 'सीमाब' क्यूँ तर्ज़-ए-सुख़न तेरी न लाए रंग फ़ैज़ान-ए-हुमा ये हो नहीं सकता