मैं तुझ से जो माँगूँ तो यही माँगूँ कि मुझ को
By aftab-shahSeptember 5, 2024
मैं तुझ से जो माँगूँ तो यही माँगूँ कि मुझ को
मुहताज न करना किसी दुनियावी ख़ुदा का
दुनिया के मसाइब से अगर झुकने लगूँ तो
हाथों में थमा देना 'असा अपनी 'अता का
कमज़ोर जो पड़ने लगे आवाज़ मिरी तो
दुनिया में बढ़ा देना असर मेरी सदा का
आ जाए अगर वक़्त कड़ा प्यारों पे मेरे
फ़ज़लों में पिरो देना बदन उन की दु'आ का
नमनाक जो हो जाऊँ कभी अपनों से मौला
आँखों से मिटा देना अलम अपने गदा का
दुनिया की निगाहों से अगर गिरने लगूँ तो
'इज़्ज़त को बना देना शरफ़ मेरी क़बा का
हो जाएँ अगर हाथ मिरे ख़ाली तो मौला
कश्कोल में भर देना भरम अपनी रज़ा का
मुहताज न करना किसी दुनियावी ख़ुदा का
दुनिया के मसाइब से अगर झुकने लगूँ तो
हाथों में थमा देना 'असा अपनी 'अता का
कमज़ोर जो पड़ने लगे आवाज़ मिरी तो
दुनिया में बढ़ा देना असर मेरी सदा का
आ जाए अगर वक़्त कड़ा प्यारों पे मेरे
फ़ज़लों में पिरो देना बदन उन की दु'आ का
नमनाक जो हो जाऊँ कभी अपनों से मौला
आँखों से मिटा देना अलम अपने गदा का
दुनिया की निगाहों से अगर गिरने लगूँ तो
'इज़्ज़त को बना देना शरफ़ मेरी क़बा का
हो जाएँ अगर हाथ मिरे ख़ाली तो मौला
कश्कोल में भर देना भरम अपनी रज़ा का
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