मैं ज़िंदगी के सितम को रिवाज कह न सका

By aftab-shahNovember 28, 2024
मैं ज़िंदगी के सितम को रिवाज कह न सका
शिकस्ता-पा भी रहा आबला भी बह न सका
मैं जान-बूझ के पीछे रहा ज़माने से
मैं दोस्तों की दग़ा बार-बार सह न सका


'अजीब हाल हुआ दिल भी बे-क़रार रहा
वो हाल-ए-दिल था कि रोए बग़ैर रह न सका
मैं हक़-परस्त क़बीले का फ़र्द हूँ साहिब
चढ़ा भी सूली तो मैं सच को झूट कह न सका


मैं उस की सोच के दरिया में बहते बहते कभी
बना जो मौज तो दरिया के बीच रह न सका
76852 viewsghazalHindi