मैं ने तिरी बस्ती के ये देखे हैं नज़ारे

By irfan-aazmiFebruary 6, 2024
मैं ने तिरी बस्ती के ये देखे हैं नज़ारे
महुए के दरख़्तों से टपकते हैं सितारे
रहने दे इसी तरह फ़लक के ये नज़ारे
दामन पे छिटक यूँ कि बिखर जाएँ सितारे


मौजों की रवानी में तुझे देख रहा हूँ
बैठा हूँ बड़ी देर से दरिया के किनारे
बढ़ जाएगी दो चार बरस और मिरी 'उम्र
दो चार घड़ी तू जो मिरे साथ गुज़ारे


तुम कैसे सपेरे हो न मंतर है न तिर्याक़
झोली में लिए फिरते हो साँपों के पिटारे
हम तोड़ चुके हैं जिसे बे-कार समझ कर
दीवार खड़ी थी उन्हीं ईंटों के सहारे


इतना तो बताना कि नमाज़ी भी कोई है
ऊँचे हैं तिरे गाँव की मस्जिद के मनारे
अल्लाह भी रज़्ज़ाक़ है बंदा भी सख़ी है
मर जाते हैं 'इरफ़ान' बहुत भूक के मारे


97690 viewsghazalHindi