मंज़िल-ए-ख़्वाब है और महव-ए-सफ़र पानी है
By akram-mahmudJune 1, 2024
मंज़िल-ए-ख़्वाब है और महव-ए-सफ़र पानी है
आँख क्या खोलीं कि ता-हद्द-ए-नज़र पानी है
आइना है तो कोई 'अक्स कहाँ है इस में
क्यूँ बहा कर नहीं ले जाता अगर पानी है
एक ख़्वाहिश कि जो सहरा-ए-बदन से निकली
खींचती है उसी जानिब को जिधर पानी है
पाँव उठते हैं किसी मौज की जानिब लेकिन
रोक लेता है किनारा कि ठहर पानी है
अब भी बादल तो बरसता है पर उस पार कहीं
किश्त-ए-बे-आब इधर और इधर पानी है
खींचता है कोई सय्यारा तिरे प्यासों को
उस 'इलाक़े में जहाँ ख़ाक-बसर पानी है
चश्म-ए-नम और दिल-ए-लबरेज़ बहुत हैं मुझ को
ख़ित्ता-ए-ख़ाक है और ज़ाद-ए-सफ़र पानी है
आँख क्या खोलीं कि ता-हद्द-ए-नज़र पानी है
आइना है तो कोई 'अक्स कहाँ है इस में
क्यूँ बहा कर नहीं ले जाता अगर पानी है
एक ख़्वाहिश कि जो सहरा-ए-बदन से निकली
खींचती है उसी जानिब को जिधर पानी है
पाँव उठते हैं किसी मौज की जानिब लेकिन
रोक लेता है किनारा कि ठहर पानी है
अब भी बादल तो बरसता है पर उस पार कहीं
किश्त-ए-बे-आब इधर और इधर पानी है
खींचता है कोई सय्यारा तिरे प्यासों को
उस 'इलाक़े में जहाँ ख़ाक-बसर पानी है
चश्म-ए-नम और दिल-ए-लबरेज़ बहुत हैं मुझ को
ख़ित्ता-ए-ख़ाक है और ज़ाद-ए-सफ़र पानी है
93656 viewsghazal • Hindi