मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं

By agha-shayar-qazalbashSeptember 28, 2024
मस्कन वहीं कहीं है वहीं आशियाँ कहीं
दो आड़े सीधे रख लिए तिनके जहाँ कहीं
फूलों की सेज फूलों की हैं बद्धियाँ कहीं
काँटों पे हम तड़पते हैं ओ आसमाँ कहीं


जाते किधर हो तुम सफ़-ए-महशर में ख़ैर है
दामन न हो ख़ुदा के लिए धज्जियाँ कहीं
पहरा बिठा दिया है ये क़ैद-ए-हयात ने
साया भी साथ साथ है जाऊँ जहाँ कहीं


बस मुझ को दाद मिल गई मेहनत वसूल है
सुन ले ग़ज़ल ये बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ कहीं
'शा'इर' वो आज फिर वहीं जाते हुए मिले
दुश्मन के सर पे टूट पड़े आसमाँ कहीं


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