मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है

By dil-shahjahanpuriOctober 29, 2020
मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है
जाते हो कहाँ रुख़ फेर के तुम मुझ को तो अभी कुछ कहना है
खींचेंगे वहाँ फिर सर्द आहें आँखों से लहू फिर बहना है
अफ़्साना कहा था जो हम ने दोहरा के वहीं तक कहना है


दुश्वार बहुत ये मंज़िल थी मर मिट के तह-ए-तुर्बत पहुँचे
हर क़ैद से हम आज़ाद हुए दुनिया से अलग अब रहना है
रखता है क़दम इस कूचा में ज़र्रे हैं क़यामत-ज़ा जिस के
अंजाम-ए-वफ़ा है नज़रों में आग़ाज़ ही से दुख सहना है


ऐ पैक-ए-अजल तेरे हाथों आज़ाद-ए-तअ'ल्लुक़ रूह हुई
ता-हश्र बदल सकता ही नहीं हम ने वो लिबास अब पहना है
ऐ गिर्या-ए-ख़ूँ तासीर दिखा ऐ जोश-ए-फ़ुग़ाँ कुछ हिम्मत कर
रंगीं हो किसी का दामन भी अश्कों का यहाँ तक बहना है


अपना ही सवाल ऐ 'दिल' है जवाब इस बज़्म में आख़िर क्या कहिए
कहना है वही जो सुनना है सुनना है वही जो कहना है
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