मज़हका-खेज़ ये किरदार हुआ जाता है
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
मज़हका-खेज़ ये किरदार हुआ जाता है
वो जो 'आशिक़ था अदाकार हुआ जाता है
गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे
वो खुला-पन है कि दीवार हुआ जाता है
खेल है उस के लिए तर्क-ए-त'अल्लुक़ का ख़याल
और कोई सोच के बीमार हुआ जाता है
फ़र्क़ इतना तो पड़ा है कि मुलाक़ात के दिन
अब ज़रा देर से तय्यार हुआ जाता है
एक ही जैसे हैं हम सब के मसाइल शायद
मेरा ग़म सब का सरोकार हुआ जाता है
हम तो लहरों से फ़क़त खेलने आए थे यहाँ
और समुंदर है कि बेदार हुआ जाता है
नींद पर जितने कड़े पहरे लगाता हूँ मैं
ख़्वाब का रास्ता हमवार हुआ जाता है
वो जो 'आशिक़ था अदाकार हुआ जाता है
गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे
वो खुला-पन है कि दीवार हुआ जाता है
खेल है उस के लिए तर्क-ए-त'अल्लुक़ का ख़याल
और कोई सोच के बीमार हुआ जाता है
फ़र्क़ इतना तो पड़ा है कि मुलाक़ात के दिन
अब ज़रा देर से तय्यार हुआ जाता है
एक ही जैसे हैं हम सब के मसाइल शायद
मेरा ग़म सब का सरोकार हुआ जाता है
हम तो लहरों से फ़क़त खेलने आए थे यहाँ
और समुंदर है कि बेदार हुआ जाता है
नींद पर जितने कड़े पहरे लगाता हूँ मैं
ख़्वाब का रास्ता हमवार हुआ जाता है
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