मिरा दिल ऐसा तोड़ा है किसी ने कहीं का भी न छोड़ा है किसी ने बहुत शफ़्फ़ाफ़ है पानी यहाँ का तो क्या दामन निचोड़ा है किसी ने मैं ग़फ़लत में पड़ा था मुद्दतों से मुझे आ कर झिंझोड़ा है किसी ने मोहब्बत की कहानी क्या बताएँ बना कर अपना छोड़ा है किसी ने शिकन माथे की तेरी कह रही है कलाई को मरोड़ा है किसी ने मिरा ही नाम लिक्खा होगा 'फ़ारूक़' वो इक काग़ज़ जो मोड़ा है किसी ने