मिरे आगे वो आ कर चुप खड़ा था
By ahmad-kamal-hashmiMay 24, 2024
मिरे आगे वो आ कर चुप खड़ा था
मुझे मा'लूम है क्या कह रहा था
ज़माना देख कर हैरत-ज़दा था
मैं रोते रोते क्यों हँसने लगा था
हिला कर जिस ने मुझ को रख दिया था
किसी की याद थी या ज़लज़ला था
बहुत तकलीफ़ सह कर मर गया मैं
मुझे सच बोलने का ‘आरिज़ा था
मैं पत्थर था पर इक शीशे की ख़ातिर
शिकस्ता मुझ को होना पड़ गया था
'कमाल' उस से जुदा हो कर मुसलसल
जुदाई पर मैं नज़्में कह रहा था
मुझे मा'लूम है क्या कह रहा था
ज़माना देख कर हैरत-ज़दा था
मैं रोते रोते क्यों हँसने लगा था
हिला कर जिस ने मुझ को रख दिया था
किसी की याद थी या ज़लज़ला था
बहुत तकलीफ़ सह कर मर गया मैं
मुझे सच बोलने का ‘आरिज़ा था
मैं पत्थर था पर इक शीशे की ख़ातिर
शिकस्ता मुझ को होना पड़ गया था
'कमाल' उस से जुदा हो कर मुसलसल
जुदाई पर मैं नज़्में कह रहा था
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