मेरे जीने की सज़ा हो जैसे
By aadil-aseer-dehlviJanuary 1, 2025
मेरे जीने की सज़ा हो जैसे
ज़िंदगी एक ख़ता हो जैसे
दिल के गुलशन से गुज़र जाती है
याद इक बाद-ए-सबा हो जैसे
यूँ ख़यालों में चले आते हो
कोई पाबंद-ए-वफ़ा हो जैसे
याद है तुझ से बिछड़ने का समाँ
शाख़ से फूल जुदा हो जैसे
अपनी बातों पे गुमाँ होता है
तू ने कुछ मुझ से कहा हो जैसे
उस से मिल कर हुआ महसूस 'असीर'
वो मिरे साथ रहा हो जैसे
ज़िंदगी एक ख़ता हो जैसे
दिल के गुलशन से गुज़र जाती है
याद इक बाद-ए-सबा हो जैसे
यूँ ख़यालों में चले आते हो
कोई पाबंद-ए-वफ़ा हो जैसे
याद है तुझ से बिछड़ने का समाँ
शाख़ से फूल जुदा हो जैसे
अपनी बातों पे गुमाँ होता है
तू ने कुछ मुझ से कहा हो जैसे
उस से मिल कर हुआ महसूस 'असीर'
वो मिरे साथ रहा हो जैसे
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