मिरे लहू ने मिरे जिस्म से बग़ावत की
By salim-saleemFebruary 28, 2024
मिरे लहू ने मिरे जिस्म से बग़ावत की
ये और कुछ भी नहीं बात है तबी'अत की
निकल के दिल से मैं दुनिया में हूँ क़याम-पज़ीर
कहाँ ठहरना था मुझ को कहाँ सुकूनत की
अज़ल के रोज़ का होना न होना यकसाँ था
तो मैं ने अपने न होने पे फिर क़नाअ'त की
ये ख़ुश्क-ओ-तर ये ज़मीं-आसमाँ ये रोज़-ओ-शब
कोई भी चीज़ नहीं है मिरी ज़रूरत की
ये और कुछ भी नहीं बात है तबी'अत की
निकल के दिल से मैं दुनिया में हूँ क़याम-पज़ीर
कहाँ ठहरना था मुझ को कहाँ सुकूनत की
अज़ल के रोज़ का होना न होना यकसाँ था
तो मैं ने अपने न होने पे फिर क़नाअ'त की
ये ख़ुश्क-ओ-तर ये ज़मीं-आसमाँ ये रोज़-ओ-शब
कोई भी चीज़ नहीं है मिरी ज़रूरत की
89784 viewsghazal • Hindi