मिरे क़रीब न आ हौसला बढ़ा न मिरा
By salim-saleemFebruary 28, 2024
मिरे क़रीब न आ हौसला बढ़ा न मिरा
कि थक चुका है तिरे बोझ से ये शाना मिरा
बस एक लम्हे की ख़ातिर ठहर गया था कोई
रुका पड़ा है उसी रोज़ से ज़माना मिरा
जो फिर रहा हूँ मैं यूँ दर-ब-दर तो अब शायद
उसे गवारा नहीं शहर में ठिकाना मिरा
ये मौत मुझ पे बड़े तंज़ कसती रहती है
कि ज़िंदगी से त'आरुफ़ है ग़ाएबाना मिरा
कि थक चुका है तिरे बोझ से ये शाना मिरा
बस एक लम्हे की ख़ातिर ठहर गया था कोई
रुका पड़ा है उसी रोज़ से ज़माना मिरा
जो फिर रहा हूँ मैं यूँ दर-ब-दर तो अब शायद
उसे गवारा नहीं शहर में ठिकाना मिरा
ये मौत मुझ पे बड़े तंज़ कसती रहती है
कि ज़िंदगी से त'आरुफ़ है ग़ाएबाना मिरा
72100 viewsghazal • Hindi