मेरी दहलीज़ तक जो आ न सका
By ahmad-muneebDecember 29, 2020
मेरी दहलीज़ तक जो आ न सका
मैं अभी तक उसे भुला न सका
ज़िंदगी ख़ाक में मिलाई गई
आशिक़ी ख़ाक में मिला न सका
जो मुझे मुफ़्लिसी दिखाता रहा
मैं उसे मुफ़्लिसी दिखा न सका
बा'द उस के मैं मुस्कुराता रहा
बा'द उस के मैं खिलखिला न सका
तुम मिरी बेबसी को क्या जानो
मैं उसे ख़्वाब तक दिखा न सका
दुख तो ये है मुझे मुनीब अहमद
मैं उसे शाइ'री सुना न सका
मैं अभी तक उसे भुला न सका
ज़िंदगी ख़ाक में मिलाई गई
आशिक़ी ख़ाक में मिला न सका
जो मुझे मुफ़्लिसी दिखाता रहा
मैं उसे मुफ़्लिसी दिखा न सका
बा'द उस के मैं मुस्कुराता रहा
बा'द उस के मैं खिलखिला न सका
तुम मिरी बेबसी को क्या जानो
मैं उसे ख़्वाब तक दिखा न सका
दुख तो ये है मुझे मुनीब अहमद
मैं उसे शाइ'री सुना न सका
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