मिरी झोली में वो लफ़्ज़ों के मोती डाल देता है

By abdul-ahad-saazApril 22, 2024
मिरी झोली में वो लफ़्ज़ों के मोती डाल देता है
सिवाए इस के कुछ माँगूँ तो हँस कर टाल देता है
सुझाता है वही रस्ता भी उन से बच निकलने का
जो इन आँखों को ख़्वाबों के सुनहरे जाल देता है


मिरा इक कारोबार-ए-जज़्बा-ओ-अल्फ़ाज़ है उस से
मिरे जज़्बों को पिघला कर वो मिसरे ढाल देता है
हक़ीक़त घोल रखता है वो रूमानों के पानी में
मनाज़िर ठोस देता है नज़र सय्याल देता है


उतर आता है वो शोख़ी पे यूँ भी मेहरबानी की
मिरे इक शे'र की मोहलत को माह ओ साल देता है
11602 viewsghazalHindi