मिरी नज़र का नहीं मेरे दिल का धोका था
By ahmad-kamal-hashmiMay 24, 2024
मिरी नज़र का नहीं मेरे दिल का धोका था
वो तो नहीं था कोई और तेरे जैसा था
जो छन से टूट गया क्या था देखना होगा
वो ख़्वाब था कि मिरा दिल कि कोई शीशा था
अमीर लोग ख़रीदार बन के आए थे
मुझे किसी ने ख़रीदा नहीं कि सस्ता था
सियाह चश्मे के पीछे से मैं ने सब देखा
तमाम लोग समझते रहे मैं अंधा था
समझ में आई है अब जा के उस को क़द्र मिरी
उसी ने मुझ को ख़रीदा कि जिस ने बेचा था
ज़मीं पे आज तलक मैं पहुँच नहीं पाया
किसी ने इतनी बुलंदी से मुझ को फेंका था
कुछ और समझा गया उस के हर इशारे को
गवाह क़त्ल का मेरे 'कमाल' गूँगा था
वो तो नहीं था कोई और तेरे जैसा था
जो छन से टूट गया क्या था देखना होगा
वो ख़्वाब था कि मिरा दिल कि कोई शीशा था
अमीर लोग ख़रीदार बन के आए थे
मुझे किसी ने ख़रीदा नहीं कि सस्ता था
सियाह चश्मे के पीछे से मैं ने सब देखा
तमाम लोग समझते रहे मैं अंधा था
समझ में आई है अब जा के उस को क़द्र मिरी
उसी ने मुझ को ख़रीदा कि जिस ने बेचा था
ज़मीं पे आज तलक मैं पहुँच नहीं पाया
किसी ने इतनी बुलंदी से मुझ को फेंका था
कुछ और समझा गया उस के हर इशारे को
गवाह क़त्ल का मेरे 'कमाल' गूँगा था
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