मिरी तरह का कोई शख़्स मर गया मुझ में
By akash-arshMay 30, 2024
मिरी तरह का कोई शख़्स मर गया मुझ में
तिरे वुजूद का एहसास भर गया मुझ में
'अजीब गर्द-ए-रह-ए-शौक़ जम गई लब पर
'अजीब ज़ौक़-ए-सफ़र सा ठहर गया मुझ में
किसी परिंद की चीख़ों ने संग-बारी की
सुकूत-ए-शाम का शीशा बिखर गया मुझ में
हवा-ए-दर्द चली दिल की खिड़कियाँ खटकीं
मकीन-ए-गोशा-ए-उम्मीद डर गया मुझ में
हर एक सम्त तिरी याद का धुँदलका है
तिरे ख़याल का सूरज उतर गया मुझ में
तलाश-ए-सौत-ओ-सदा में किधर गया मैं 'अर्श'
वो नग़मा-साज़-ए-ख़मोशी किधर गया मुझ में
तिरे वुजूद का एहसास भर गया मुझ में
'अजीब गर्द-ए-रह-ए-शौक़ जम गई लब पर
'अजीब ज़ौक़-ए-सफ़र सा ठहर गया मुझ में
किसी परिंद की चीख़ों ने संग-बारी की
सुकूत-ए-शाम का शीशा बिखर गया मुझ में
हवा-ए-दर्द चली दिल की खिड़कियाँ खटकीं
मकीन-ए-गोशा-ए-उम्मीद डर गया मुझ में
हर एक सम्त तिरी याद का धुँदलका है
तिरे ख़याल का सूरज उतर गया मुझ में
तलाश-ए-सौत-ओ-सदा में किधर गया मैं 'अर्श'
वो नग़मा-साज़-ए-ख़मोशी किधर गया मुझ में
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