मेस्मिरीज़्म के 'अमल में दह्र अब मशग़ूल है

By akbar-allahabadiMay 30, 2024
मेस्मिरीज़्म के 'अमल में दह्र अब मशग़ूल है
मग़रिब-ओ-मशरिक़ में इक ‘आमिल है इक मा'मूल है
जिस्म-ओ-जाँ कैसे कि ‘अक़्लों में तग़य्युर हो चला
था जो मकरूह अब पसंदीदा है और मक़्बूल है


मतला'-ए-अनवार-ए-मशरिक़ से है ख़िल्क़त बे-ख़बर
मुस्तनद परतव वो है मग़रिब से जो मन्क़ूल है
गुलशन-ए-मिल्लत में पामाली सर-अफ़राज़ी है अब
जो ख़िज़ाँ-दीदा है बर्ग अपनी नज़र में फूल है


कोई मरकज़ ही नहीं पैदा हो फिर क्यूँकर मुहीत
झोल है पेचीदगी है अबतरी है भूल है
31265 viewsghazalHindi