मिले हैं आँख को मंज़र लहू में डूबे हुए
By abdur-rauf-anjumMarch 27, 2021
मिले हैं आँख को मंज़र लहू में डूबे हुए
तमाम शहर के पत्थर लहू में डूबे हुए
ज़रूर अमन का पैग़ाम ले गया था कहीं
परिंदा लौटा लिए पर लहू में डूबे हुए
अदालत उन को ही मज़लूम कह के छोड़ न दे
हैं जिन के हाथ में ख़ंजर लहू में डूबे हुए
पलट जा तेरी ज़रूरत ही क्या है ए सैलाब
हैं मेरी बस्ती के सब घर लहू में डूबे हुए
वो सुर्ख़-रू हैं वही सर-बुलंदी हैं 'अंजुम'
सजे हैं नेज़ों पे जो सर लहू में डूबे हुए
तमाम शहर के पत्थर लहू में डूबे हुए
ज़रूर अमन का पैग़ाम ले गया था कहीं
परिंदा लौटा लिए पर लहू में डूबे हुए
अदालत उन को ही मज़लूम कह के छोड़ न दे
हैं जिन के हाथ में ख़ंजर लहू में डूबे हुए
पलट जा तेरी ज़रूरत ही क्या है ए सैलाब
हैं मेरी बस्ती के सब घर लहू में डूबे हुए
वो सुर्ख़-रू हैं वही सर-बुलंदी हैं 'अंजुम'
सजे हैं नेज़ों पे जो सर लहू में डूबे हुए
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