मिरे ग़ुबार भरे आइनों में रहती है
By arsalan-rathorOctober 2, 2021
मिरे ग़ुबार भरे आइनों में रहती है
वो आँख जिस के लिए रौशनी तरसती है
इस इंहिमाक से तस्वीर देखता हूँ तिरी
कि एक बार तो इस्क्रीन भी लरज़ती है
दो एक दीप से जुगनू तो आँख आँख में हैं
कहीं कहीं पे चराग़ों की सरपरस्ती है
तुम्हारे ध्यान की मीठी सी दूधिया ख़ुशबू
हयात-बख़्श है इतनी कि ऐन हस्ती है
तमाम रात पुराने दिनों की इक नागिन
समय की खिड़कियों से आ के दिल को डसती है
वो आँख जिस के लिए रौशनी तरसती है
इस इंहिमाक से तस्वीर देखता हूँ तिरी
कि एक बार तो इस्क्रीन भी लरज़ती है
दो एक दीप से जुगनू तो आँख आँख में हैं
कहीं कहीं पे चराग़ों की सरपरस्ती है
तुम्हारे ध्यान की मीठी सी दूधिया ख़ुशबू
हयात-बख़्श है इतनी कि ऐन हस्ती है
तमाम रात पुराने दिनों की इक नागिन
समय की खिड़कियों से आ के दिल को डसती है
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