मिरी ख़ता सर-ए-महफ़िल तलाश करता है बहाना क़त्ल का क़ातिल तलाश करता है चुभो के तंज़ के नेज़े हमारी रग रग में वो शिद्दत-ए-ख़लिश-ए-दिल तलाश करता है चमन जला के परिंदों का कर के क़त्ल-ए-आम वो नग़्मा-हा-ए-अनादिल तलाश करता है रुमूज़-ए-नक़्द-ओ-नज़र से जो आश्ना भी नहीं ग़ज़ल में नक़्स वो जाहिल तलाश करता है वो ख़ून-ए-हसरत-ए-दिल से नवाज़ कर आँसू लहू का रंग भी शामिल तलाश करता है मिज़ा पे इज्ज़ के तारे लिए हुए 'हस्सान' दर एक सज्दे के क़ाबिल तलाश करता है