मिरी ख़ता सर-ए-महफ़िल तलाश करता है
By hassaan-arfiOctober 31, 2020
मिरी ख़ता सर-ए-महफ़िल तलाश करता है
बहाना क़त्ल का क़ातिल तलाश करता है
चुभो के तंज़ के नेज़े हमारी रग रग में
वो शिद्दत-ए-ख़लिश-ए-दिल तलाश करता है
चमन जला के परिंदों का कर के क़त्ल-ए-आम
वो नग़्मा-हा-ए-अनादिल तलाश करता है
रुमूज़-ए-नक़्द-ओ-नज़र से जो आश्ना भी नहीं
ग़ज़ल में नक़्स वो जाहिल तलाश करता है
वो ख़ून-ए-हसरत-ए-दिल से नवाज़ कर आँसू
लहू का रंग भी शामिल तलाश करता है
मिज़ा पे इज्ज़ के तारे लिए हुए 'हस्सान'
दर एक सज्दे के क़ाबिल तलाश करता है
बहाना क़त्ल का क़ातिल तलाश करता है
चुभो के तंज़ के नेज़े हमारी रग रग में
वो शिद्दत-ए-ख़लिश-ए-दिल तलाश करता है
चमन जला के परिंदों का कर के क़त्ल-ए-आम
वो नग़्मा-हा-ए-अनादिल तलाश करता है
रुमूज़-ए-नक़्द-ओ-नज़र से जो आश्ना भी नहीं
ग़ज़ल में नक़्स वो जाहिल तलाश करता है
वो ख़ून-ए-हसरत-ए-दिल से नवाज़ कर आँसू
लहू का रंग भी शामिल तलाश करता है
मिज़ा पे इज्ज़ के तारे लिए हुए 'हस्सान'
दर एक सज्दे के क़ाबिल तलाश करता है
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