मोहब्बत की सज़ा पाई बहुत है

By adeel-zaidiOctober 23, 2020
मोहब्बत की सज़ा पाई बहुत है
हमारे ग़म में गीराई बहुत है
खड़ा मेले में अक्सर सोचता हूँ
मिरे अंदर तो तन्हाई बहुत है


नहीं है और कोई सिर्फ़ मैं हूँ
फ़लक से ये सदा आई बहुत है
कमा लें शोहरतें सस्ती सी हम भी
मगर इस में तो रुस्वाई बहुत है


तसव्वुर शर्त सब कुछ सामने है
नज़र वालों को बीनाई बहुत है
'अदील' उस को कहाँ तुम भूल पाए
क़सम गो तुम ने ये खाई बहुत है


38504 viewsghazalHindi