मोहब्बत की ये होती है सज़ा क्या

By abrar-asarJune 19, 2024
मोहब्बत की ये होती है सज़ा क्या
लहू बहता है आँखों से सदा क्या
ज़बाँ ख़ामोश थी फ़र्त-ए-अदब से
तुम्हारे सामने मैं बोलता क्या


हमेशा साथ है जिस के तू या-रब
ग़रज़ हो उस को दुनिया से भला क्या
मिलाता ही नहीं नज़रें वो मुझ से
ख़ुद अपनी ही नज़र से गिर गया क्या


ख़मोशी चीख़ती है ज़ेहन में क्यों
कोई आने को है अब ज़लज़ला क्या
मुझे ही मिलते हैं क्यों ग़म ये आख़िर
इन्हें मा'लूम है मेरा पता क्या


बहकते हैं क़दम 'अबरार' तेरे
किसी से 'इश्क़ तुझ को हो गया क्या
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