मोम का ये जिस्म मेरा धूप की यलग़ार है
By shamim-danishFebruary 29, 2024
मोम का ये जिस्म मेरा धूप की यलग़ार है
वक़्त-ए-मुश्किल है मदद मौला तिरी दरकार है
फिर तुम्हारी दीद का तरसा चला जाऊँगा मैं
फिर तुम्हारे शहर में आना मिरा बेकार है
आँख नर्गिस चाँद चेहरा ज़ुल्फ़ बादल लब गुलाब
तू सरापा ख़ालिक़-ए-कौनैन का शहकार है
उस से जो मिलता है उस का हो के रह जाता है वो
उस की आँखें दिल-बराना उस का चेहरा प्यार है
झूट बोलूँगा तो मैं अंदर से मारा जाऊँगा
सच भी कहता हूँ तो गर्दन के लिए तलवार है
वक़्त-ए-मुश्किल है मदद मौला तिरी दरकार है
फिर तुम्हारी दीद का तरसा चला जाऊँगा मैं
फिर तुम्हारे शहर में आना मिरा बेकार है
आँख नर्गिस चाँद चेहरा ज़ुल्फ़ बादल लब गुलाब
तू सरापा ख़ालिक़-ए-कौनैन का शहकार है
उस से जो मिलता है उस का हो के रह जाता है वो
उस की आँखें दिल-बराना उस का चेहरा प्यार है
झूट बोलूँगा तो मैं अंदर से मारा जाऊँगा
सच भी कहता हूँ तो गर्दन के लिए तलवार है
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