फ़सुर्दा लाख हो दिल शो'ला-सामानी नहीं जाती
By mubarak-mungeriApril 24, 2021
फ़सुर्दा लाख हो दिल शो'ला-सामानी नहीं जाती
सुकूँ में भी मिरे दरिया की तुग़्यानी नहीं जाती
दम-ए-नज़्ज़ारा भी अपनी परेशानी नहीं जाती
बिखर जाते हैं जल्वे शक्ल पहचानी नहीं जाती
दिल-ए-सादा में ओ ज़ौक़-ए-मोहब्बत बख़्शने वाले
अभी तक तेरी बख़्शिश की गुल-अफ़्शानी नहीं जाती
अभी तक पै-ब-पै नाकामियों से दिल नहीं थकता
अभी तक आरज़ूओं की फ़रावानी नहीं जाती
न जाने किस नज़र से तुझ को किस आलम में कब देखा
कि अब तक दीदा-ए-हैराँ की हैरानी नहीं जाती
'सबा' ने गुदगुदाया कुछ नसीम-ए-सुब्ह ने छेड़ा
'मुबारक' फिर भी गुल की पाक-दामानी नहीं जाती
सुकूँ में भी मिरे दरिया की तुग़्यानी नहीं जाती
दम-ए-नज़्ज़ारा भी अपनी परेशानी नहीं जाती
बिखर जाते हैं जल्वे शक्ल पहचानी नहीं जाती
दिल-ए-सादा में ओ ज़ौक़-ए-मोहब्बत बख़्शने वाले
अभी तक तेरी बख़्शिश की गुल-अफ़्शानी नहीं जाती
अभी तक पै-ब-पै नाकामियों से दिल नहीं थकता
अभी तक आरज़ूओं की फ़रावानी नहीं जाती
न जाने किस नज़र से तुझ को किस आलम में कब देखा
कि अब तक दीदा-ए-हैराँ की हैरानी नहीं जाती
'सबा' ने गुदगुदाया कुछ नसीम-ए-सुब्ह ने छेड़ा
'मुबारक' फिर भी गुल की पाक-दामानी नहीं जाती
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