फ़सुर्दा लाख हो दिल शो'ला-सामानी नहीं जाती सुकूँ में भी मिरे दरिया की तुग़्यानी नहीं जाती दम-ए-नज़्ज़ारा भी अपनी परेशानी नहीं जाती बिखर जाते हैं जल्वे शक्ल पहचानी नहीं जाती दिल-ए-सादा में ओ ज़ौक़-ए-मोहब्बत बख़्शने वाले अभी तक तेरी बख़्शिश की गुल-अफ़्शानी नहीं जाती अभी तक पै-ब-पै नाकामियों से दिल नहीं थकता अभी तक आरज़ूओं की फ़रावानी नहीं जाती न जाने किस नज़र से तुझ को किस आलम में कब देखा कि अब तक दीदा-ए-हैराँ की हैरानी नहीं जाती 'सबा' ने गुदगुदाया कुछ नसीम-ए-सुब्ह ने छेड़ा 'मुबारक' फिर भी गुल की पाक-दामानी नहीं जाती