मुद्दत हुई शे'रों के सिवा कुछ नहीं कहता

By sajid-raheemFebruary 28, 2024
मुद्दत हुई शे'रों के सिवा कुछ नहीं कहता
या'नी मैं ब-जुज़ नाज़-ओ-अदा कुछ नहीं कहता
करता है मोहब्बत तो परस्तिश की हदों तक
बरहम हो तो ग़ुस्से में वो क्या कुछ नहीं कहता


दरवेश तबी'अत मुझे विर्से में मिली है
मैं ठीक ग़लत अच्छा बुरा कुछ नहीं कहता
देता है कोई शोख़ बदन इज़्न-ए-जसारत
तू हाथ बढ़ा बंद-ए-क़बा कुछ नहीं कहता


ऐ नेक मनुश मेरी नहीं फ़िक्र कर अपनी
उजड़े हुए लोगों को ख़ुदा कुछ नहीं कहता
ये जो नज़र आता है हर इक दाग़ सलामत
यूँ है कि पुराने को नया कुछ नहीं कहता


रोता है बहुत जो भी नया आए जहाँ में
होता है क़फ़स से जो रिहा कुछ नहीं कहता
33766 viewsghazalHindi